लोगों की राय

धर्म एवं दर्शन >> सुग्रीव और विभीषण

सुग्रीव और विभीषण

रामकिंकर जी महाराज

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :40
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9825
आईएसबीएन :9781613016145

Like this Hindi book 0

सुग्रीव और विभीषण के चरित्रों का तात्विक विवेचन

।। श्रीराम शरणं मम्।।

सुग्रीव और विभीषण

‘श्रीरामचरितमानस’ में एक ओर श्रीसुग्रीव का चरित है और दूसरी ओर श्रीविभीषण हैं और दोनों के चरित में जो भगवान् का मिलन होता है, उस मिलन में श्रीहनुमान् जी ही मुख्य कारण बनते हैं। फिर भी सुग्रीव और विभीषण के चरित में अन्तर है और इस अन्तर का मुख्य तात्पर्य यह है कि भगवत्प्राप्ति के लिए किसी एक विशेष प्रकार के चरित और व्यक्ति का वर्णन किया जाय तो उसको सुनने वाले या पढ़ने वाले के मन में ऐसा लगता है कि इस चरित में जो सद्गुण हैं, जो विशेषताएँ हैं, वे हमारे जीवन में नहीं है और यदि किसी विशेष प्रकार के सद्गुण के द्वारा ही ईश्वर को पाया जा सकता है तो हम ईश्वर की प्राप्ति के अधिकारी नहीं हैं।

प्रस्तुत भ्रम का निराकरण करने के लिए ‘श्रीरामचरितमानस’ में न जाने कितने पात्रों की सृष्टि की गयी है, उनके चरित्र का वर्णन किया गया है और यदि उन पर दृष्टि डालें तो उनके आचार में, उनके स्वभाव में एवं गुण में एक-दूसरे से भिन्नता-ही-भिन्नता दिखायी देती है, पर सर्वथा भिन्नता दिखायी देने पर भी जब उन्हें भगवत्प्राप्ति होती है तो इसके द्वारा संसार के समस्त जीवों को यह आश्वासन मिलता है कि भगवत्प्राप्ति के लिए किसी एक प्रकार के विशेष व्यक्तित्व की ही अपेक्षा नहीं है। मानो जो व्यक्ति जैसा भी है, उस रूप में ही वह भगवान् को प्राप्त कर लेता है।

विभीषण और सुग्रीव के चरित्र में भी बड़ी भिन्नता है। विभीषण लंका की प्रतिकूल परिस्थितियों में रहकर भी भगवान् की पूजा करते हैं, भगवान् का भजन करते हैं। विभीषण के लिए हम कह सकते हैं कि वे ऐसे जीव हैं कि जो साधक हैं। उनकी साधना का जो वर्णन किया गया है, वह बड़ा सांकेतिक है। विभीषण पूर्व जन्म में धर्मरुचि थे और उस समय वे प्रतापभानु नाम के धर्मात्मा राजा के मन्त्री थे। उस समय भी उनका यही वर्णन किया गया है कि –

सचिव धरमरुचि हरि पद प्रीती।
नृप हित हेतु सिखव नित नीती।। 1/154/3

Next...

प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book